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लेखनी कहानी -22-Jun-2022 रात्रि चौपाल

भाग  9 : बंधुआ मजदूर 


"बाड़ाबंदी" ईवेन्ट के सफल आयोजन से कलेक्टर साहब की धाक पूरे जिले में जम गई । उनके बारे में अनेकानेक प्रकार की किंवदंतियों हवा में तैरने लगीं । कोई उन्हें "मुखिया" जी का "खासमखास" बताने लगा तो कोई "पार्टी सुप्रीमो" का "खास" बता रहा था । उनसे मिलने आने वालों की संख्या में भारी इजाफा हुआ । कलेक्ट्रेट में भीड़ का हुजूम उमड़ने लगा । इतनी भीड़ को देखकर कलेक्टर साहब को झुंझलाहट आने लगी । "क्यों आते हैं लोग यहां पर ? कोई काम धाम नहीं है क्या इनके पास" ? कलेक्टर साहब ने अपने पी ए से कहा । कलेक्टर साहब का अधिकांश समय "जन सुनवाई" में जाने लगा और इससे उनके व्यक्तिगत "ऐश" प्रभावित होने लगे थे । 
समझदार पी ए के पास ज्ञान और अनुभवों का पूरा पिटारा होता है । ऐसे समय पर ही तो उनकी "विशेषज्ञता" का पता चलता है । पी ए बहुत समझदार था उसने तुरंत  रास्ता सुझाते हुए कहा 
"सर, ADM साहब हैं न अपने पास । उनके पास में काम ही क्या है ? इस भीड़ को वहां पर भेज देते हैं । आप तो आराम से आया करें । "जन सुनवाई" ए डी एम साहब कर लिया करेंगे" 

"वाह, क्या आईडिया दिया है पी ए ने । एक पंथ दो काज वाली कहावत फिट बैठती है इस पर । एक तो भीड़ इधर से उधर शिफ्ट हो जायेगी और दूसरे ADM पर कुछ और बोझ लद जायेगा । बहुत उछलता रहता है दिन भर । इस बोझ से अब कम उछलेगा वह" । कलेक्टर साहब मन ही मन यह सोच कर खुश हो रहे थे । 

ए डी एम को तो फोन से कहने की जरूरत भी महसूस नहीं की थी कलेक्टर साहब ने । ऐसी छोटी मोटी बातों के लिए कलेक्टर के पास कहां समय होता है ? इन कामों के लिए पी ए होता है ना । पी ए ने ही कलेक्टर साहब की व्यस्तता की बात कह कर ए डी एम को "जन सुनवाई" करने के लिए कह दिया । 

"बंधुआ मजदूरों" से उनकी इच्छा पूछी जाती है क्या ? उन्हें तो आदेश का पालन करना ही पड़ता है । लोग कहते हैं कि "बंधुआ मजदूरी" खत्म हो गई है मगर किसी ए डी एम से पूछो तो पता चलेगा कि "बंधुआ मजदूरी" खत्म हो गई या और बढ गई । पर नक्कारखाने में तूती की आवाज भी सुनी जाती है क्या ?  

ए डी एम साहब तो काम के बोझ से पहले ही दबे पड़े थे । अब दो घंटे "जन सुनवाई" के लिए और देने होंगे उन्हें । लेकिन धैर्य, संयम जैसे महान गुणों के कारण ही तो ए डी एम शिप की जा सकती है । जिसमें ये गुण नहीं वह सफल ए डी एम नहीं बन सकता है । 

एक ए डी एम साहब एक जिले में चार साल लगातार ए डी एम की कुर्सी सुशोभित करते रहे । जिस दिन उनके चार साल पूरे हुए उस दिन उन्होंने एक छोटी सी चाय पार्टी का आयोजन किया । एक मुँहफट प्रशासनिक अधिकारी ने उनसे पूछ लिया कि चार साल में उनका कोई "खास" काम क्या रहा ? ए डी एम साहब हमेशा की तरह मुस्कुरा कर बोले "चार साल ए डी एम रहा , यही सबसे खास काम है" । इसे कहते हैं हाजिर जवाबी ।  ऐसे ही ए डी एम साहबान सफल ए डी एम कहलाते हैं । 

इन ए डी एम साहब ने उन्हीं से प्रशिक्षण लिया था इसलिए मुस्कुराते हुए इस "जन सुनवाई" को भी अपने ऊपर ओढ लिया । "कोई बात नहीं । पहले रात को आठ बजे घर जाता था अब दस बजे चला जाऊंगा । यही तो होगा । इतनी छोटी सी बात के लिए कलेक्टर को क्या नाराज करना ?  बीवी वैसे भी देर सवेर आने की आदी हो चुकी है । बच्चे भी धीरे धीरे समझ ही जाएंगे" । यह सोचकर ए डी एम साहब दिल को तसल्ली देने लगे । 

एक दिन कुछ सरपंचों का एक प्रतिनिधिमंडल कलेक्टर साहब से मिलने आया । कलेक्टर साहब ने अपने प्रशिक्षण के दौरान अपने "गुरू" से पूछा था सरपंचों के बारे में । तब अनुभवी गुरू ने बताया कि "जन प्रतिनिधि" जनता का चुना हुआ एक नुमाइंदा होता है । इनमें से कुछ के तार सीधे "मुख्यमंत्री" से जुड़े होते हैं । इसलिए पहले यह ज्ञात करो कि जिले में किस किस के तार किस किस से जुड़े हुए हैं । जिनके तार सीधे "सी एम ओ" से जुड़े हों उन्हें ही भाव देना है बाकी किसी को नहीं । कलेक्टर साहब ने अपने गुप्त सूत्रों से ऐसे वी वी आई पी लोगों की सूची तैयार करवा ली थी । 

सरपंच संघ का अध्यक्ष सी एम साहब की "कोटरी" का था अत : कलेक्टर ने उसका स्वागत खड़े होकर किया और कहा "सी एम साहब जब आये थे तब आपका जिक्र कर रहे थे" । 
सरपंच संघ के अध्यक्ष के कान खड़े हो गये । "कलेक्टर तो काम के आदमी नजर आ रहे हैं । क्या पता इनकी सी एम साहब तक सीधी पहुंच हो" ऐसा मन में सोचते हुए अपनी प्रशंसा करते हुए कहने लगे 
"सी एम साहब का विशेष अनुग्रह है मुझ पर । जब भी आते हैं , घर पर नाश्ता किये बिना नहीं जाते हैं । इस बार तो पहले ही कह दिया था कि नाश्ते में क्या क्या बनाना है । श्रीमती जी को अपनी "धर्म बहन" बना रखा है उन्होंने । हर साल राखी बंधवाते हैं सी एम साहब" । 

अब तो रिश्ता भी बता दिया गया । सी एम साहब के नजदीकी होने का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है ? कलेक्टर साहब ने सबको अच्छी तरह से "जलपान" करवाया और आने का कारण पूछा तो अध्यक्ष ने कहा 
"आजकल एस डी एम साहबान हमारी बातें सुनते ही नहीं हैं । कोई काम नहीं करते हैं जनता का । ना तो ऑफिस में बैठते हैं और ना ही फील्ड में जाते हैं । पता नहीं दिन भर कहां मटर गश्ती करते हैं । ना तो बिजली आती है और ना ही पानी । जनता त्राहि त्राहि कर रही है और ये अफसर लोग मौज उड़ा रहे हैं" । 
"पर बिजली पानी के लिए तो अलग विभाग बने हुए हैं । आपने उनके एक्स ई एन से बात की" ? 
"हम एक्स ई एन वगैरह को नहीं जानते हैं कलेक्टर साहब । हम तो बस एस डी एम साहब को ही जानते हैं । जिस तरह आप जिले के मालिक हैं वैसे ही एस डी एम साहब भी सूबे के मालिक हैं । कोई काम नहीं करते हैं ये अधिकारीगण । एक बार आप जाकर तो देखो एस डी एम ऑफिस को । हकीकत पता चल जायेगी आपको " । 

कलेक्टर साहब ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे जल्दी ही सभी उपखंड अधिकारियों का निरीक्षण करेंगे । उनका ज्ञापन लेकर ए डी एम को पकड़ा दिया और तुरंत कार्रवाई के लिए प्रतिनिधिमंडल के सामने ही ए डी एम को बोल दिया । सरपंच संघ का अध्यक्ष और बाकी लोग कलेक्टर के कार्य और व्यवहार से बहुत प्रसन्न हुए और उनकी प्रशंसा करके चले गये । 

ज्ञापन को देखकर ए डी एम साहब चौंके । उसमें ऐसी ऐसी मांगें लिखी थी जो कि पूरी हो ही नहीं सकती थी । जैसे चरागाह भूमि का आबंटन , सड़क के किनारे अवैध रूप से बनी बस्तियों का नियमन । ए डी एम ने अपनी शंका प्रकट की कि ये मांगे तो कोई भी पूरी नहीं कर सकता है । इसमें एस डी एम साहबान क्या कर सकते हैं ? 

ए डी एम  की बात पर कलेक्टर साहब खूब हंसे । फिर बोले "अरे, इस मांग पत्र पर कार्यवाही किसे करनी है" ? 
"पर आपने तो उन सबके सामने मुझे कहा था कि इस पर जल्दी से कार्यवाही करो" 
"उन सबके सामने तो यही कहना था । कितना समय हो गया आपको प्रशासनिक सेवा में" ? 
"आठ साल" 
"आठ साल में भी आप प्रशासन के गुर नहीं सीख पाये । खैर कोई नहीं । आप तो ऐसा करो कि इसकी एक कॉपी सभी एस डी एम को भेज दो । जिन बिन्दुओं पर काम होना है उन पर तो हो । बाकी को छोड़ दें" । 

ए डी एम साहब अब कलेक्टर से प्रशासन के गुर सीखने लगे । 

श्री हरि
21.7.22 

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8 Comments

shweta soni

26-Jul-2022 09:48 PM

Nice 👍

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Seema Priyadarshini sahay

26-Jul-2022 09:11 PM

बेहतरीन रचना

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shweta soni

25-Jul-2022 03:18 PM

बेहतरीन रचना 👌👌

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